देशव्यापी प्रवास में अप्रत्याशित गिरावट
दशकों तक भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर बेहतर रोजगार, शिक्षा और अवसरों की तलाश में प्रवास करते रहे। लेकिन प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) द्वारा जारी की गई ‘400 मिलियन ड्रीम्स!’ नामक नई रिपोर्ट बताती है कि अब यह रुझान बदल रहा है। 2011 की तुलना में प्रवासी संख्या में 5.4 मिलियन (11.8%) की गिरावट देखी गई है। यह महज एक संख्या नहीं, बल्कि ग्रामीण भारत में बदलती आर्थिक और सामाजिक वास्तविकता को दर्शाता है।
कम लोग क्यों जा रहे हैं शहरों की ओर?
देखने में लगता है कि ग्रामीण इलाकों में अब सड़क, बिजली और आवास बेहतर हो गए हैं, है ना? आंशिक रूप से यह सही है। पीएम आवास योजना–ग्रामीण और ग्रामीण विद्युतीकरण योजनाओं ने बुनियादी ढांचे में सुधार किया है। लेकिन रिपोर्ट बताती है कि ये सुधार पर्याप्त तेज या व्यापक नहीं हुए हैं। कई ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी रोजगार की कमी, स्थिर मजदूरी और कमजोर आर्थिक गतिविधि बनी हुई है।
परिवहन और बैंकिंग डेटा से कहानी साफ होती है
रिपोर्ट रेलवे और बैंकिंग आंकड़ों का उपयोग कर प्रवास को ट्रैक करती है। COVID के बाद गैर–शहरी यात्रियों की रेल यात्रा में 6.7% की गिरावट और 2011 से बस यात्रा में 16% की गिरावट आई है। यानी काम के लिए अब कम लोग एक शहर से दूसरे शहर जा रहे हैं।
बैंकिंग पैटर्न भी प्रवास का संकेत देते हैं। यदि किसी राज्य में Savings Account से Current Account (SA/CA) अनुपात अधिक है, तो इसका अर्थ है कि लोग बाहर कमाकर पैसा घर भेज रहे हैं। उदाहरण के लिए, बिहार में यह अनुपात 10.14 है, जो उच्च प्रवास को दर्शाता है। वहीं, दिल्ली या मुंबई जैसे शहरों में यह अनुपात कम है, क्योंकि वहां कमाई स्थानीय स्तर पर ही हो रही है।
‘ग्रामीणकरण’ – फायदे के साथ चुनौती भी
रिपोर्ट का सबसे आश्चर्यजनक पहलू है – “ग्रामीणकरण“ की अवधारणा। सुनने में यह सकारात्मक लगता है, लेकिन वास्तव में यह संकेत है कि लोग मजबूरी में गांवों में रुक रहे हैं क्योंकि शहरों में नौकरी की स्थिरता नहीं है। स्वचालन और फैक्ट्री नौकरियों में कमी के कारण कई लोग खेतों में कम उत्पादक काम करने को मजबूर हैं। यानी यह विकल्प नहीं, मजबूरी है।
व्यापक आर्थिक परिप्रेक्ष्य
भारत में कार्यबल लगातार बढ़ा है, लेकिन प्रवास में हर साल औसतन -1% की गिरावट आई है। 2011 में जहां 9.3% कामगार प्रवास करते थे, वहीं अब यह आंकड़ा 6.7% रह गया है। इसका मतलब है कि शहरी अर्थव्यवस्था अब उतने लोगों को रोजगार नहीं दे पा रही है, खासकर COVID के बाद।
इसलिए यदि कम लोग शहरों की ओर बढ़ रहे हैं, तो यह ग्रामीण जीवन के बेहतर हो जाने की निशानी नहीं, बल्कि शहरी अवसरों के सूखने का संकेत है।
नीति-निर्माताओं को क्या करना चाहिए?
यह महज आंकड़ों की रिपोर्ट नहीं – यह नीतिगत चेतावनी है। सरकार को अब ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक रोजगार, कौशल विकास, और लघु उद्योगों को प्रोत्साहन देना चाहिए। प्रवास या गरीबी के बीच चुनने की मजबूरी को खत्म करना होगा। कल्पना कीजिए, अगर झारखंड या ओडिशा का कोई युवा अपने गांव में ही स्किल सीखकर बिज़नेस शुरू कर सके या किसी उद्योग में काम कर सके—यही वह भविष्य है जिसे यह रिपोर्ट प्रेरित करती है।
STATIC GK SNAPSHOT FOR COMPETITIVE EXAMS
विषय | विवरण |
रिपोर्ट का नाम | ‘400 मिलियन ड्रीम्स!’ |
प्रकाशित करने वाली संस्था | प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) |
डेटा विश्लेषण वर्ष | 2023 |
प्रवासी गिरावट | 5.4 मिलियन (11.8%) – 2011 से |
प्रवास दर | 2023 में 28.9% (2011 में 37.6%) |
SA/CA अनुपात (बिहार) | 10.14 – उच्च प्रवास क्षेत्र |
SA/CA अनुपात (दिल्ली/मुंबई) | कम – स्थानीय आय प्रधान |
परिवहन में गिरावट | रेलवे – 6.7%, बस यात्रा – 16% (2011 के बाद से) |
प्रमुख योजना | पीएम आवास योजना – ग्रामीण (PMAY-G) |
मुख्य फोकस | ग्रामीण रोजगार और प्रवास के रुझान |